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Showing posts from 2009

आत्मबोध

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कर्म की नईया डोल रही है! आत्मा व्याकुल हो बोल रही है!! ओ साकी, अब सोना मत! इन भवरों में, तुम खोना मत!! सिर्फ़ पतवार, चलानी सीखी है! मंजिल तुझको, कहाँ दिखी है!! जब मंजिल की किरणे, आन लगेगी! विचलन की भी, वाण चलेगी!! इन वाणों से, आहत न होना रे! क्षणिक सुखों के खातिर, मंजिल की चाहत न खोना रे!! नदी नहीं, सागर बन जा! गंभीरता की, गागर बन जा!! जब लहरें (distraction) तेरी, थम जाएँगी! तभी नदियाँ ( चंचलता ), तुझमें खो पाएँगी!! नईया के मस्तूल के भांति, लहरों को थामे रखना है! भूल न जाना की तुमको, भवसागर से पार निकलना है!!

वो बैगन की खेती

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यादों की नईया, जब हिचकोले लेती! फिर याद आती, वो बैगन की खेती!! हरे-नीले उजले, व् काले थे बैगन! उन्हें देख झूम, उठता था अंतर्मन!! अमित प्यार से, करता मैं सिचाईं! उन्हें साथ देख, दूर रहती तन्हाई!! दिन के उजाले में, करता मैं जुताई! रातों के अँधेरे में, होती खूब पढाई!! शारीरिक-मानसिक श्रम की, ऐसी संतुलन थी बनायी! जिसने प्रतिकूल परिवेश में भी, सफलता दिलायी!! जब जब इस दिल को, तन्हाई सताती! वो बैगन की खेती, फिर याद आती!!

'इंजीनियरिंग' मेरी भूल

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इंजीनियरिंग में चयन हुआ जब, गर्व हुआ घरवालों को! जगा दिए सब अरमां दिल में, इंजिनियर कहलाने को!! किस्सा है वो पहले साल की, बंधक हुए हम, खुद के जाल की!! देर रात तक, रैगिंग होती! सुबह क्लास भी, जल्दी होती!! इस बेबस दौराहे पे, दिख गयी रीना और मीना! classes छोड़ सिखा गयी वों, बिन-काम यारों संग जीना!! टीचर्स और यारों के बीच, होती अक्सर खिंचा-तानी! साथ छोड़ टीचर्स का हम, करने लगे थे मनमानी!! दिन-महीने साल भी बीते, फिर समय का आगाज हुआ! बदनामी से डरने लगा, जब नौकरी का मोहताज हुआ!! अब यारों का भी साथ नहीं, न रीना है न मीना है! सोचा करता हूँ अब बस, ये जीना भी क्या जीना है!!

सनम की याद

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मद्धम सी है शाम ढल रही! मंद-मंद पुरवाई चल रही!! फिर याद तुम्हारी आती है! अक्सर तन्हा कर जाती है!! वो दिलवर तू आ जा रे! मद्य नयन छलका जा रे!! होठों के पान कराने को! तेरी झुल्फों में खो जाने को!! आतुर ये पागल दीवाना है! प्रीत चाँद-चकोरे के भी, जिसके चाहत के न पैमाना हैं!! इंतज़ार है तेरे आने का! तेरा मुझको अपनाने का!! अब प्यासे की प्यास बढ़ा न रे ! झुल्फों को लहराकर अपने, स्पर्श का ज्ञात करा जा रे!! वो दिलवर तू आ जा रे ! वो दिलवर तू आ जा रे ! !

वतन की याद

हमें याद आती है, अब भी वतन की! उस नीले गगन की, व् प्यारे चमन की!! वो मम्मी की यादें, वो पापा की बातें! वो संगीन लम्हें, वो दिन और रातें! वो दोस्तों संग रहना, लड़ना-झगड़ना! फिर साथ-साथ मिल के, हँसना-हँसाना!! गुजर गया वो, रंगीन जमाना! सोंधी मिट्टी की खुशबू, व् भोजपुरी गाना!! वो मक्के की रोटी, वो आलू की सब्जी! वो लिट्टी व् चोखा, याद आता है अब भी!! वो होली की यादें, दिवाली की रातें! लगता है बिछड़ गयीं, सारी कायनातें!! याद आती है हमको, हरएक कण-कण की! हमें याद आती है............................ उस नीले गगन की..........................

मानवता

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राह दिखाओ उनको यारों, जो मंजिल से दूर हुए हैं! भले ही मंजिल नहीं मिली, वो भी थक-थक के चूर हुए हैं!! मानवता का दीप बनो, ऐ जगे हुए इंसान! सबको तुम जगाओ व्, बनो मानवता का प्राण!! ये मत भूलो हमसब हैं, एक ही पिता (GOD) के संतान! सबका जीवन सफल बने, कुछ ऐसा करो अनुष्ठान!! वे भी परिश्रम बहुत किये हैं, कुछ कारणवश मंजिल से दूर हुए हैं! राह दिखाओ उनको यारों, जो मंजिल से दूर हुए हैं!! भले ही मंजिल नहीं मिली, वो भी थक-थक क चूर हए हैं!!! वे भी जीवन-दर्पण के बनें विजेता, कुछ ऐसा करो प्रयास! जीवनपथ क अधिपति बनें, जो आजतक हैं जीवन दास!! सब कुछ संभव हो सकता है, अगर तुम लोगे ठान! कुछ ऐसा कर डालो ऐ मानव, की सबकी मुरलिया छेड़े नयी तान!! कल तक थे वे तुम्हारे ही साथी, आज वे तुमसे दूर हुए हैं! राह दिखाओ उनको यारों, जो मंजिल से दूर हुए हैं! भले ही मंजिल नहीं मिली, वो भी थक-थक क चूर हए हैं!!

माँ व् ममता

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आओ सुनाऊं, जीवन की कहानी! माँ व् ममता, कैसी होतीं दिवानी!! हम उनके अंकुर हैं, उनके साँसों की धड़कन! धरती पे आने से पहले, सांस लेने से पहले, हुआ करते हैं हम, उनके अभिन्न अंग!! खुद के अंगो की संरक्षण, होती जीतनी प्यारी! माँ की ममता भी, उतनी होती न्यारी!! स्वयं गीला रहकर, हमें सूखे पे सुलाती! ममतामयी थपथपाहट से, निंदिया बुलाती!! जब बच्चों को, कोई व्याधि सताती! वो निर्भय हो, गरलपान कर जाती!! उंगली पकड़ न सिर्फ, चलना सिखाती! नैतिकता, सच्चाई व् आदर्शिता की, राह भी दिखाती!! ओ जीवनदायनी, त्याग की मूर्ति, तुझे व् तेरी ममता को, सत्-सत् नमन! इतना साहस देना, की कर सकूँ तुझको 'तेरा जीवन' अर्पण!!

अभिलाषा

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जब झील सी सिमटी, छवि निराली, व्याकुल करती मेरी जिज्ञासा! चौकस करता अंतर्मन मेरा, क्या यही है तेरी अभिलाषा!! दीप बनोगे मानवता का, कुछ ऐसा था तुमने ठाना! चाहा कब था आपदा के, इन भवंरों को गले लगाना!! जिन हाथों ने तुझको थामा, व् जीवनपथ के आलम्ब बनें! छोड़ न जाऊँ उनको प्यासा, कुछ ऐसे थी तेरी अभिलाषा!! जीवन एक मिला है साकी, रूककर व्यर्थ गवाओं न! इस भाग-दौड़ की दुनिया में, अपनों से साथ छुडाओ न! जब निष्प्रभ हो याद कर लेना, उन बेबस नयनों की आशा! क्षणिक सुखों की बलि चढाकर, चल पूरी कर अपनी अभिलाषा!

पहला प्यार

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मिली वो अनजान राहों पे, डुबो गयी अपनी यादों में! जाने क्या है ऐसा जादू किया, मरू में ऊपवन का आभास दिया! हरियाली सी है छाने लगी, हरपल याद उसी की आने लगी! डूब जाता हूँ उसकी ख्यालों में, मदिरा बहती है नैनन के प्यालों में! वो नयनें हैं या मधुशाला, पागल है जीसने कर डाला! नींद चुरायी, चैन चुराया, उसके चेहरे के संवेदन से, बेचारा ये दिल घबराया! जब जब बहती है पुरवाई, दे जाती है हमें तन्हाई! उसके छुवन ने है ये रोग लगायी, शायद यही है प्यार की अगुवाई!

होली २००९

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होली आती, स्मरण कराती, पिछली कितनी होली! वो बचपन वाली टोली,कीचड़-पानी व् रंगों की रंगोली!! इक बार दिल ने फिर ललकारा , होली खेलने जाना है! इस होली में फिर से नये, प्यार का रंग चढाना है!! कीचड़ का तो नाम नहीं था, रंगों का न कोई ठिकाना! खुशियों का रंग बरसाएंगे, कुछ ऐसा था हमने ठाना!! सबने थामी थी पिचकारी, हंसियों की बरसात हुई ! शायद उनको भी हमारे, रंग-ए-मुहब्बत की आगाज हुई !! इस होली पे सबने सारे, बंधन को था तोड़ दिया! शोख-आदयों से उन्होंने, इस सोये दिल को झाझ्कोड़ दिया!! होली की रंगीन समां में, उनसे दिले की तार हुई! दिलवालों के इस रंगोली में, दो दिलों की हार हुई!! दो दिलों की हार हुई, दो दिलों की हार हुई....!!