अर्थ हुआ कुअर्थ
अब समझने का न रहा समर्थ, बदल रहे शब्दों के अर्थ! ब्राह्मण कुल में जन्मा मुर्ख भी, अब परम-पूज्य हो जाता है! हर लम्बी-दाढ़ी चोंगावाला, साधु-संत कहलाता है!! दूध के लिये गाय पालना, मूर्खता का बोध कराता है! पर कुत्तों के संग सुबह टहलना, सामाजिक-प्रतिष्ठा दर्शाता है!! फ़िल्मी डांस और गाना बजा, हम मूर्ति-पूजन करते हैं! मानव से अब कौन डरे, भगवान् से भी नहीं डरते हैं!! सत्य-अहिंसा व् चोरी नहीं करना, हर मानव-धर्म का यही था कहना! ये हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, सम्प्रदायों के नाम है भाई!! शील-समाधि-ज्ञान-प्रज्ञा ही, मूल-धर्म कहलाते थे! इन्हें ही पालन करनेवाले, धार्मिक माने जाते थे!! सच्चाई के तरफ इशारा मात्र भी, अब गांधीगीरी कहलाता है! मानव-धर्म की चर्चा करनेवाला, हास्य-पात्र बन जाता है!! अब तो गोरी-चिकनी काया ही, सुन्दरता की हुई परिभाषा! देख बिशाल कैसी बदल रही है, मानवता और धर्म की भाषा!! अर्थ-कुअर्थ के भवंर में डूबे, चित्त की सुन्दरता को भूल रहे! अपने मतलब का अर्थ बना, (व्याकुल हो) हम अहंकार में झूल रहे !! हम अहंकार में झूल रहे......!!-2