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आत्मबोध (II)

मैंने खुद से पूछा "तू कौन है?" इस प्रश्न पे क्यूँ मौन है!! इस हाड़-मांस की काया में, और आमूढ़ मानवी माया में! क्यूँ भटक रहा तू सालों-साल, चल तोड़ अब ये माया जाल!! हर दुःख की सीमा जान ले, सच्चे सुख को तू पहचान ले! दुःख भौतिक होता नित्य नहीं, और भोग-विलास नित्य-सुख नहीं!! तू ऊर्जा का इक स्रोत है, हर-पल इक जलता ज्योत है! जिस प्रान्त में भी जाए तू, उजियारा बनकर छाए तू!! बापू-सुबास तेरे मन में हों, और भगत सिंह कण-कण में हों! इन महात्माओं को तू जान ले, अपने बुद्ध को पहचान ले!! करुणा रगों में प्रवाह हो, विवेक ही तेरा स्वभाव हो! जब-जब कभी थककर थमे, तू विकास का ही चिंतन करे!! आलस्य अतिनिद्रा त्याग कर, विश्वास से तू आगे बढ़! पल-पल तेरी प्रज्ञा जगे, हर-क्षण (तुझे) सुख-की-बेला लगे!! जग का दिया जो तेरा नाम है, वो तेरी नहीं पहचान है! तू पांच-तत्वों का रूप है, हर ईश्वर का स्वरुप है!! जब भ्रान्ति जग का मिटाएगा, तभी चित्त की शान्ति पायेगा! इन रहस्यों को तू जान ले, अपने आप को पहचान ले!! अपने आप को पहचान ले, तू अपने आप को पहचान ले...