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Showing posts from 2012

पुरवाई

आते-जाते बादल में, रात की चाँदनी चादर में! विभोर हो मन-मद्द नाच उठा, स्पर्श हवा का पाया जब, इस सावन के पुरवाई का!! जूही, चमेली, रातरानी की खुशबू, जाने कहाँ से चलकर आयी थी! सुगंध इनकी, साँसों के, हर निवाले में समायी थी!! सुबह हुई जब आँख खुली, आलस्य का वैभव छाया था! ये पूर्वा बयार, अंग-अंग के, भूले पीड़े को जगाया था!! जब बिस्तर छोड़ सैर को निकला, मिजाज हुआ अंगराई का! स्पर्श हवा का पाया जब, इस सावन की पुरवाई का!! क्षण धूप हुआ, क्षण छाँव हुआ, सोंधी मिट्टी की खुशबू से, आच्छादित था गाँव हुआ! रोम-रोम हर्षाया तब, धुन सरगम का पाया जब, रिमझिम बूंदों की शहनाई का!! विभोर हो मन-मद्द नाच उठा, स्पर्श हवा का पाया जब, इस सावन के पुरवाई का!!

गणेश पूजा

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गणेश-चतुर्थी के शुभ अवसर पे, विशाल को आज यही है सुझा! तन-मन ज्ञान और निष्ठां से, घर-घर में हो श्री गणेश की पूजा!! मुखड़ा है गजराज की भाँती, पेट ऐसा की ढँक गया छाती! पर हीनता का कोई बोध नहीं, सुन्दर दिखने का लोभ नहीं!! (जबकी) आज फ़िल्मी धुन पे गाना बजा, हम मूर्ति पूजन करते हैं! और पूजा करने के खातिर, हम  घंटो तक सवंरते हैं!! आज सुशिक्षित होने का लेप लगा, हम ऐसे अन्धकार में जी रहे हैं! मानो अमृत-प्याली  में, ओ साकी, विष हलाहल पी रहे हैं!! जब वे केवल बालक थे, माँ के आज्ञा के पालक थे, सर कलम कर डाला पिता ने इनकी, पर नहीं दिखाया क्षोभ तनिक भी! पूजनीय थी ऐसी सहनशीलता, आओ आज जगाएं इसे हम भी!! ब्रम्हांड दिखा इन्हें मात-पिता में, ये परम सत्य के शोधक हैं! विवेक, बुद्धि और ज्ञान रूप में, रिद्धि-सिद्धि के बोधक हैं!! रूप-जाल को तोड़ जो प्राणी, इन  गुणों को अपनाता है! शुभ-अशुभ के भवंर से उठ, अपना  अंतर्गणेश जगाता  है!! फिर शुभ-ही-शुभ होता जीवन में, लक्ष्मी को, साथ निरंतर भाता  है! ऐसा कीर्ति पाता है जग में, की उसका हर रूप पूजनीय हो जाता है!! व

उलझन

तह-ऐ-दिल में तेरी तमन्ना छुपाये, आरजू की तेरी सपनें संजोये! सोचता हूँ अब किधर जाऊंगा मैं, जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं!! जानता हूँ, तू मेरी किस्मत नहीं है, पर तुझे खोने की, मुझमें हिम्मत नहीं है!! दर्दों को भुलाकर, नींदों को सुलाकर, चाहत में तेरी, किया खुद को अर्पण! जब से तुने मुझसे, नजरें मिलायी, नज़रों को तेरी, बनाया मैं दर्पण!! फिर, हर फड़कन तेरे नाम का चिंगारी लाया, हर धड़कन तेरी चाहत को जगाया!! मुह्हबत में तेरी हुआ बावला मैं, समझ न सका तेरी उलझी पहेली! (जबकी) तेरी बेवफाई और तिर्या-चरित्र से, हर रोज चेतायी, मेरी वो सहेली!! पर जब-जब कहती वो, "तेरे लायक नहीं मैं", मेरे दिल ने पूछा, "क्या अपना नायक नहीं मैं"!! दिल के इस कथन पे, चहकता चला मैं! तेरे लटों की डगर पे, बहकता चला मैं!! मूरत को तेरी, मन-मंदिर में बसाये, तृष्णा की ज्वाला, इस कदर है जलाया! की सोचता हूँ अब किधर जाऊंगा मैं, जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं... जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं... जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं...

राखी

उमड़ा भाई-बहन का प्यार, आया राखी का त्यौहार! गाँठो पे गाँठ जुड़ेगा आज, कहलाता यह रिश्तों का ताज!! बहना ने आशीर्वादों से, राखी का थाल सजाया है! कपूर की लौ की भाँती, उजियारा मन में छाया है!! पूर्णिमा सी श्वेत हृदय से, कुमकुम-चावल का चन्दन! लगकर भाई के ललाट पे, करते वैभव का अभिनन्दन!! अक्षत- पवित्र-करुणामयी, कच्चा धागा बाँधी हो! रक्षा करते हैं हर क्षण, चाहे तूफान या आंधी हो! भाव-विभोर हो आज विशाल, जोड़ा है, वचनों का तार! रक्षा में तेरी ओ बहना, जीवन भी देंगे हम वार!! जीवन भी देंगे हम वार.... जीवन भी देंगे हम वार....

यथार्थ-दर्शन

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तन-मन  के गांठों को तोड़, व्याकुलता का दामन छोड़! जब नितांत प्रज्ञा जगाओगे, यथार्थ-दर्शन को पाओगे!! इस मतवाले चित्त पे आते-जाते, संस्कारों का बोध करो! समता रख इनकी लहरों में, विकारों का निरोध करो!! क्रोध, ईर्ष्या और काम-वासना, विकारों के मूल हैं भाई! इनसे दूर रहने में ही, हमसब की है चतुराई!! विकार जगें जब चित्तमन पे, सजग हो इनको जानो तुम! प्रतिक्रया किये बिना इनकी, नश्वरता को पहचानो तुम!! जो उत्पन्न हुआ है, नष्ट भी होगा, यह गति समझ बढ़ जाओगे! इन दु:संस्कारों  का तब ही, समूल नाश कर पाओगे!! जग के हर-एक क्रिया-कर्म में, नश्वरता का मूल समझ, सकर्म कर बढ़ते जाओ तुम! ज्योत जगा ज्ञान-चक्षु का,  उजियारा जग में लाओ तुम!!

सबक (For girls)

इस बावली मौसम की बहार में, रिमझिम सी बूंदों की फुहार में! मद-मस्त हो तब मैं झूम रही थी, उन्मुक्त गगन को चूम रही थी!! तब बावला होकर मेरी चाह में, चारो पहर मंडराता था! मेरी हर अदाओं पे वो, अपनी जान फरमाता था!! घंटो-घंटो तक फोन किया, सपनों का जाल बिछाया वो! हर घड़ी मनोहर बात बनाकर, मुझ पगली को रिझाया वो!! जब यकीन किया उसके पौरुष पे, उसके बातों का इकरार किया! माने या न माने वो, फिर, तहे-दिल से उसे प्यार दिया!! परवाह किये बिना दुनिया की, उसपे मैं जान बिछाती थी! उसकी हर अदायें तब, मुझ बावली को रिझाती थीं!! मेरी वही सादगी वही तरुणा, उसे अब नहीं भाति है! जानें क्यूँ मुझसे मिलने से, उसकी नजरें कतराती हैं!! गह-विगह वह फोन लगाकर, कहता है मुझे भूल रहा है! सूना है आजकल वो बेवफा, किसी और की बाँह में झूल रहा है!! अब समझ चुकी इस 'प्यार' का अर्थ, 'सबक' इसे इक मान लिया है! कर्मभूमि को जाऊँगी, मैं भी अब ठान लिया है!! अपनी जीवन को अब मैं, ऐसा सफल बनाऊंगी की, वो इक दिन पछतायेगा! वो इक दिन पछतायेगा! वो जरुर इक दिन पछतायेगा!!

सबक (For boys)

इन खुशियों की पावन बेला में, और दिलवालों की मेला में! हम पास रहकर भी दूर हुए, सब अरमान चकनाचूर हुए!! मानो मुट्ठी में वो जैसे, रेत की भांति फिसल गयी! इस दुनियादारी की चक्की में, मेरी अभिलाषा पिसल गयी! धड़कन से ज्यादा प्यार दिया, पल-पल उसका दिलदार किया! पर जाने किस सजा में विधि ने, आज ऐसा प्रहार किया!! इक आहट मात्र, साथ होने की, पूरकता का बोध कराती थी! और यादें उसकी सीरत की, नयी ऊर्जा देकर जाती थी!!  फिर लग जाता नितकर्मों में, बड़ी लगन से निशदिन पढता था! इक ईष्ट की भांति सारी मेहनत,  उसी को अर्पण करता था!! सोचा था उसको भी शायद, इंतज़ार है मेरा आने का! किसी पावन घडी में आकर, मेरा उसको अपनाने का!! पर थाम लिया किसी और ने दामन, देरी हो गयी आने में! वक्त की नियति न समझा, तभी बैठा हूँ महखाने में!! घाव लगे इस आहत दिल को, विशाल किसी तरह संभाल लिया! पर दीवानों की, हर टोली के लिए, इसे "सबक" का, है नाम दिया!! दीवानों की, हर टोली के लिए, इसे "सबक" का, है नाम दिया! इसे "सबक" का, है ना