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Showing posts from 2014

सच्चा सच्च

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युगों से यात्रा शुरू है तेरी, यह जन्म भी इसका हिस्सा है! इससे पहले जाने कितने, जन्मों का तेरा किस्सा है !! समय की चकरी घूम रही, दुःख-सुख धूप और छाँव हैं ! तेरे इस सफर में साकी, मृत्यु एक पड़ाव है !! इस जनम का नाता-रिश्ता, यही समाप्त हो जाएगा ! तेरी अगली यात्रा में, साथ कोई नहीं आएगा !! यह शरीर जिसे तू 'मैं' कहता है, वो भी मिट्टी में मिल जाएगा ! अपने कर्मों के अनुरूप, इक नया शरीर तू पायेगा !! फिर कौन अपना है, कौन पराया, इस गूढ़ रहस्य को जान लो ! माया-मोह के बंधन से उठ, कर्म-भेद पहचान लो !! बार-बार कहता बिशाल, नित-ध्यान करो, और योग करो ! अपने इस मानव जीवन का, अच्छे से उपयोग करो !! अच्छे से उपयोग करो... तुम अच्छे से उपयोग करो....!!

दीवाली - 2014

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Heidelberg में आज दीवाली, मिलकर हम मनाएंगे ! घंटो-तक हमसब मिलकर, मस्ती के दीये जलाएंगे !! इन दीपों का प्रकाश, खुशियों की लहर फैलायेगा ! अंधियारा सबके मन-मंदिर का, क्षण-भंगुर हो जायेगा !! ठुमका, गान, बाज भी होगा, DJ का आगाज भी होगा ! धड़कन-धड़कन थिड़केगा ! साँसों की अंगराई से, रोम-रोम आज फिड़केगा !! दिल से दिल का तार भी होगा ! मस्ती के इस वारिश में, छुपी नजरों से वार भी होगा !! उन वारों की चिंगारी, दिल के दीये जलाएंगी ! मन-मंदिर को क्षण-भर में, प्रकाशमान कर जाएंगी !! आओ जलाएं, प्यार का दीप ! मानवता के सार का दीप ! खुशियाँ और सौहार्द का दीप ! निजकर्मों से पुरुषार्थ का दीप ! इन दीपों  के जगमग से, सब भाव-विभोर हो जाएंगे ! Heidelberg  में आज दीवाली, मिलकर हम मनाएंगे… घंटो तक हमसब मिलकर, मस्ती के दीये  जलाएंगे ।।

ज्ञान-चक्षु

जन्म होने पे सब पाते, केवल सांसे और धडकन! भूल इन्हे हम पिरो देते हैं, रिश्तोँ का बंधन !! किसी का बेटा, किसी का भांजा, किसी का नाती-पोता ! चढ़ा चश्मा इन रिश्तों का, सब जीवन ज्योत है खोता!! राग-द्वेष से विरत हर बच्चा, होता निर्मल निश्छल ! अपने पराये का भेद न जाने, ढूंढता करुणा पल-पल !! अब बूँद-बूँद माया-मोह का, जो घूंट लिया वो क्षण-क्षण ! इस काल-चक्र की चकरी में, भुलाया सांस और धड़कन !! आमूढ़ संस्कारों के परत तले, फ़िर दबने लगा अंतर्मन ! और द्वेष-राग से दहक उठा, तृष्णा से भरे ये तन-मन !! ये राग-द्वेष सुखी लकड़ी के भाँती, जलाये शरीर के इंजन ! तृष्णा है पेट्रोल ओ साकी, दूर रख ऐसे  ईंधन !! चाहे बचपन हो या यौवन हो, या बुढ़ापे की साया ! प्रियतमा से भी प्यारी होती, सबकी अपनी काया !! (इसके) नश्वरता का मूल समझ, देख ! क्या खोया क्या पाया! ज्योत जगा ज्ञान-चक्षु का, की, न फटक सके कोइ माया !!  न फटक सके कोइ माया साखी,  न फटक सके कोइ माया!!

प्यार का मौसम

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लो फिर से आ गया है, प्यार का ये मौसम ! भौरों का कलियों से, दिलदार का ये मौसम !! समाँ धूप में सनी है, हवा में कनकनी है ! भौरें भवंर रहे हैं, कलियाँ सवंर रही हैं! समय की इस घड़ी में, जवाँ दिल धड़क रहे हैं ! दिलवर को याद करके, अंग-अंग फड़क रहे हैं !! दिल की धड़कनों का, आयाम जड़ रहा है ! इन्हे व्यक्त करने खातिर, हर शख्स होठों का, व्यायाम कर रहा है !! फिर से आ गया है, प्यार का ये मौसम ! भौरों के कलियों से, दिलदार का ये मौसम !! दिलदार का ये मौसम, प्यार का ये मौसम !!!!