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Showing posts from February, 2015

आधुनिक शिवपूजा- एक पाप

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आज विशाल जो सोच रहा है, कहने में संकोच रहा है ! लोगों को शायद तनिक न सुझा, क्यों होती है शिव की पूजा ! क्या होता है शिव का अर्थ, क्यों पूजा-पाठ सब रहा व्यर्थ !! देकर दुनिया को अमृत, कहते हैं विषपान किया ! विष को कंठ में धारण करके, नीलकंठ का नाम लिया !! कहता विशाल, सोचो-जानो, विष के अवयवों को पहचानो ! काम-क्रोध, लोभ और माया, उसी विष की हैं, प्रतिच्छाया !! जो कोई इन अवयवों को, काबू में रखना सीख जाता है ! शिव-ललाट पे चाँद के भाँती, शीतलता, मुख पे पाता है !! उसके जीवन से हर क्षण, मैत्री की धार निकलती है ! जैसे गंगा, शिव के सर से, निरंतर प्रफुस्टित होती है !! गले में लिपटा हो भुजंग, फिर भी, भयभीत नहीं होता है ! कितना भी गहन संकट आये, संतुलन कभी नहीं खोता है !! कैलाशपति शिव-शंकर के भाँती, जो कोई निरंतर ध्यान करे ! प्रज्ञा रुपी तीसरी नेत्र जगाकर, स्वयं का कल्याण करे !! महंगाई के इस चढ़ते दौर में, हम मूर्ति का दुग्ध-स्नान कराते ! अंधभक्ति में, विष का प्रतीक, बेल-पत्र, धतूर और भांग चढ़ाते !! पूरा दिन, लाउडस्पीकर में, शिव-महिमा का गुणगान किया ! पर शिव-गुणों को अपनाने खातिर, क्षण-मात्र

प्यार की खुमार (एक लड़की का)

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फिर आया है प्यार का मौसम, प्रियवर से दिलदार का मौसम !! तुझसे दिल की तार हुई है, खुशियों की बौछार हुई है !! सुरूर तेरी चाहत का, इस कदर छाने लगा है ! हर-पल, हर-जगह, तू हीं नजर आने लगा है !! वीरान थी ये जिंदगी, तेरे आने से पहले ! तेरी साँसों का, मेरी साँसों में, समाने से पहले !! बन के जादू , मेरी रूह में, समाने लगा है तू ! बेचैन करके हर लम्हा। तड़पाने लगा है तू !! तुझसे मिलने की हर आहट से, अंग-अंग फड़कता है ! संग होने के एहसास से, जेहन-व्-दिल धड़कता है !! हर-क्षण तेरी ख्यालों में, मैं खोयी रहती हूँ ! तेरे सपनों के साये में ही, सोयी रहती हूँ !! दिल की बगिया में, ये मौसम, अजीब बहार लायी है ! कहता विशाल, ओ पगली !  तुझपे, प्यार की खुमार छायी है !! प्यार की खुमार छायी है !! तुझपे प्यार की खुमार छायी है !!

प्यार की खुमार (एक लड़के का)

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इस वसंत-वहार की बेला में, गुलों-गुलजार की मेला में ! प्यार से प्यारे, तेरे प्यारे नैना, दे प्यार ले लिए, मेरे रैना !! तेरे प्यार की प्यारी सौदेबाजी, प्यारा-प्यार सिखाती है ! चुपके-चुपके बड़े प्यार से, मुझ प्यारे को रिझाती है !! बंद-पलकों से, शरमाकर, मुख-मंडल पे लाली लाकर ! आगोश में जब तू आती है, पूरकता का बोध कराती है !! तेरी मखमली बाहों का, आलिंगन जब-जब पाता हूँ ! भुलाकर खुद की साँसों को, तेरी साँसों में, रम जाता हूँ !! उन साँसों की गर्माहट, साथ तेरे होने की आहट, अंग-अंग फड़काता है ! स्पर्श तेरे कोमल होठों का, पागल-दीवाना कर जाता है !! दिल की बगिया में, ये मौसम, प्यार का सावन लाया है ! कहता विशाल, ओ पगले तुझपे, खुमार प्यार का छाया है !! खुमार प्यार का छाया है.... खुमार प्यार का छाया है !!