यथार्थ-दर्शन
तन-मन के गांठों को तोड़,
व्याकुलता का दामन छोड़!
जब नितांत प्रज्ञा जगाओगे,
यथार्थ-दर्शन को पाओगे!!
इस मतवाले चित्त पे आते-जाते,
संस्कारों का बोध करो!
समता रख इनकी लहरों में,
विकारों का निरोध करो!!
क्रोध, ईर्ष्या और काम-वासना,
विकारों के मूल हैं भाई!
इनसे दूर रहने में ही,
हमसब की है चतुराई!!
विकार जगें जब चित्तमन पे,
सजग हो इनको जानो तुम!
प्रतिक्रया किये बिना इनकी,
नश्वरता को पहचानो तुम!!
जो उत्पन्न हुआ है, नष्ट भी होगा,
यह गति समझ बढ़ जाओगे!
इन दु:संस्कारों का तब ही,
समूल नाश कर पाओगे!!
जग के हर-एक क्रिया-कर्म में,
नश्वरता का मूल समझ,
सकर्म कर बढ़ते जाओ तुम!
ज्योत जगा ज्ञान-चक्षु का,
उजियारा जग में लाओ तुम!!
Tum too gyani dhyani jaisi baatain karne lag gaye hoo Bishal...
ReplyDeleteGood job.. keep it up
sala..kahe ka yatharth darshan..khud yatharth ko prapt kar chuke ho aur doosre ko uske sirf darshan karwate ho....:P
ReplyDeleteसुन्दर दार्शनिक, प्रेरणा भरती रचना
ReplyDeletegud
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