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आत्म-संवाद

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चल-चला-चल, चल-चला-चल, चल बिशाल, तू चल-चला-चल!! निष्ठा को अपनी ढाल बनाकर, तत्परता से अपनी चाल रमाकर! मन रूपी अश्व को दृढ़ता से थामे, अपनी समझ के दिशा-निर्देश में! जीवन के रथ पे हो सवार, चल बिशाल, तू चल-चला-चल!! विफलताओं पे रूककर, विचार न कर, (किसी) माया का आमंत्रण, स्वीकार न कर! क्षणिक सुखों में, तुझे न रमना है, थक कर भी, कभी न थमना है! हँस-हँस के घुटक, पथ के हलाहल, चल बिशाल, तू चल-चला-चल!! सफलता की छांव, जब-कभी भी पाये, तेरे कर्म की चकरी, रुक न जाये! नित-कर्मों की लौ में, खुद को तपाकर, हर सफलता की मिसाल बना तू! दृढ-संकल्प और अथक प्रयास से, इस बिशाल को, विशाल बना तू!! चल-चला-चल, चल-चला-चल! चल बिशाल, तू चल-चला-चल!!