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Showing posts from 2011

आत्मबोध (II)

मैंने खुद से पूछा "तू कौन है?" इस प्रश्न पे क्यूँ मौन है!! इस हाड़-मांस की काया में, और आमूढ़ मानवी माया में! क्यूँ भटक रहा तू सालों-साल, चल तोड़ अब ये माया जाल!! हर दुःख की सीमा जान ले, सच्चे सुख को तू पहचान ले! दुःख भौतिक होता नित्य नहीं, और भोग-विलास नित्य-सुख नहीं!! तू ऊर्जा का इक स्रोत है, हर-पल इक जलता ज्योत है! जिस प्रान्त में भी जाए तू, उजियारा बनकर छाए तू!! बापू-सुबास तेरे मन में हों, और भगत सिंह कण-कण में हों! इन महात्माओं को तू जान ले, अपने बुद्ध को पहचान ले!! करुणा रगों में प्रवाह हो, विवेक ही तेरा स्वभाव हो! जब-जब कभी थककर थमे, तू विकास का ही चिंतन करे!! आलस्य अतिनिद्रा त्याग कर, विश्वास से तू आगे बढ़! पल-पल तेरी प्रज्ञा जगे, हर-क्षण (तुझे) सुख-की-बेला लगे!! जग का दिया जो तेरा नाम है, वो तेरी नहीं पहचान है! तू पांच-तत्वों का रूप है, हर ईश्वर का स्वरुप है!! जब भ्रान्ति जग का मिटाएगा, तभी चित्त की शान्ति पायेगा! इन रहस्यों को तू जान ले, अपने आप को पहचान ले!! अपने आप को पहचान ले, तू अपने आप को पहचान ले...

अर्थ हुआ कुअर्थ - "दोस्ती"

पल-पल विचार इस मन में आये, ये दोस्ती क्या है, कोई हमें बताये! रिश्तों से परे ये पावन होता, बीच जेठ में सावन होता! ये आशय तो सूझ रहा है, पर विशाल कहीं और जूझ रहा है!! दोस्ती के साये में साकी, क्यूँ जरुरी हुआ रोज फ़ोन मिलाना! और झूठी हंसियों के खातिर, केवल मनभावन ही बात सुनाना!! तर्क-कुतर्क व् व्यर्थ की बातों में, जो घंटों समय गवातें हैं! राह-भूले इस चंचल मन के, क्यूँ सच्चे दोस्त कहलाते हैं!! इस दुनिया के चकाचौंध में, हमने सच्ची-दोस्ती की तस्वीर भुलाया! क्षणिक सुखों की चाहत में, कर्मठता को नींद सुलाया!! जब कोई चाहे, इसे जगाये, वो, इस बन्दर-मन को नहीं भाता है! मरू में जलबुंदों की भातीं, वैसा दोस्त भुला दिया जाता है!! इसमें कोई संकोच नहीं, अब दूरगामी अपनी सोच नहीं! अब समझने का न रहा समर्थ, बदल रहा "दोस्ती" का अर्थ!! बदल रहा "दोस्ती" का अर्थ.....

अर्थ हुआ कुअर्थ

अब समझने का न रहा समर्थ, बदल रहे शब्दों के अर्थ! ब्राह्मण कुल में जन्मा मुर्ख भी, अब परम-पूज्य हो जाता है! हर लम्बी-दाढ़ी चोंगावाला, साधु-संत कहलाता है!! दूध के लिये गाय पालना, मूर्खता का बोध कराता है! पर कुत्तों के संग सुबह टहलना, सामाजिक-प्रतिष्ठा दर्शाता है!! फ़िल्मी डांस और गाना बजा, हम मूर्ति-पूजन करते हैं! मानव से अब कौन डरे, भगवान् से भी नहीं डरते हैं!! सत्य-अहिंसा व् चोरी नहीं करना, हर मानव-धर्म का यही था कहना! ये हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, सम्प्रदायों के नाम है भाई!! शील-समाधि-ज्ञान-प्रज्ञा ही, मूल-धर्म कहलाते थे! इन्हें ही पालन करनेवाले, धार्मिक माने जाते थे!! सच्चाई के तरफ इशारा मात्र भी, अब गांधीगीरी कहलाता है! मानव-धर्म की चर्चा करनेवाला, हास्य-पात्र बन जाता है!! अब तो गोरी-चिकनी काया ही, सुन्दरता की हुई परिभाषा! देख बिशाल कैसी बदल रही है, मानवता और धर्म की भाषा!! अर्थ-कुअर्थ के भवंर में डूबे, चित्त की सुन्दरता को भूल रहे! अपने मतलब का अर्थ बना,  (व्याकुल हो) हम अहंकार में झूल रहे !! हम अहंकार में झूल रहे......!!-2

दादी का त्यौहार दादा का प्यार (करवाचौथ special)

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ये करवाचौथ है फिर से आया, संग प्यार का नया सौगात है लाया! तेरे व्रत की आरती, स्पर्श चन्दन के, नए गाँठ जोड़ते, अपने बंधन के!! वो करवाचौथ की पहली साल, जब तुझे देख मैं हुआ निहाल! दुल्हन सी सजी, तब तू आगन में, चाँद देखने आयी थी, तुझे देखकर चंदा भी, अपनी चांदनी पे इतरायी थी!! कहने को अब है उमर ढली, पर तू आज भी लगती वही कली! मेरी जान है तू, अभिमान है तू, मेरी धड़कन की पहचान है तू!! तेरे दम पे ही चलता हूँ, तेरे साँसों से-ही साँसे भरता हूँ! तुने सालों-साल तक साथ निभाया, धन्य हुआ जो तुझको पाया!! तेरे बिन जीना न गवांरा है, इस बुढ़ापे की इक तू ही सहारा है! इस बुढ़ापे की  इक तू ही सहारा है....!!

ShriRam Sir की Economics

सुबह हुई नींद से जागा, बिस्तर छोड़ Class को भागा! बरस रहे थे जहाँ Jokes & Comics, देख इसे अंदाज किया मैं, ये है शायद Shriram Sir की Economics!!  यंहा शीला अक्सर आती है, हंसियों के फव्वारे दे, हमसब की नींद भगाती है!  Indian Economics समझाने को, Monetary Policy बतलाने को! मनमोहन-तिवारी भी अक्सर, यंहा साथ-साथ दिख जाते हैं! और राज बता Zero -figure के, मुस्कान सभी पे लाते हैं!! Global-Economics के recession में, Crisis के  serious discussion में! Lehman-brothers जब आते हैं, शकीरा भी साथ में लाते हैं!! जहाँ Onion की बेदामी, Inflation का चर्चा लाता है! वहीं मुन्नी की बदनामी, सबको विचलित कर जाता है!! Economics के serious discussion में, जहाँ बरस रहे हों Jokes और Comics! बिन सोचे समझ लो प्यारे, ये हैं ShriRam Sir की Economics !!-2

वो अनजानी सूरत

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इस बेमौसम बरसात में, जहाँ पत्ता-पत्ता झूम रहा है! दहक उठा दीवाना दिल, वो अनजानी नजरें ढूंढ़ रहा है! जिनके पलकों के नीचे से, गंगा-यमुना के भांति, मदिरा की धार निकलती है! जो घूंट पिला, इक दर्शन का, इस बंजर को तृप्त कर देती है!! पंखुरियों सी गाल गुलाबी, बना देती बिन-पीये शराबी! अनछुई वो ओठ सबनमी, मिटा देती है सारी कमी!! मोरनी सी बलखाती कमर पे, जब काले बाल मंडराते हैं! पल भर में इस दीवाने दिल को, अनेकों सांप सूंघ जाते हैं!! वो कुदरत की कोई सूरत है, या सुन्दरता की मूरत है! इस बेमौसम बरसात में, उस सीरत की  जरुरत है, उस सीरत की  जरुरत है!!

दीवानगी IAS की

कल तक इस तपते सूरज को, बादल से छुपते जब देखा! बावला हुआ मन यह सोचकर, कैसी सुहानी मौसम लायी है मेघा!! याद आया जब इस मौसम में, Long-Drive पे जाता था! गाना आये या न आये, यारों के सुर में सुर लगाता था!! खिड़की के बाहर से जब-जब, ये मौसम मुझे रिझाती है! कमरे के अन्दर से UPSC, Syllabus का बोझ दिखाती है!! IAS के रूप में इस जोगन ने, ऐसी जोग लगायी है! की लगता है अब जैसे, Mathematics ही मेरी लुगाई है!! व् Paali मेरी साली है!! Paali मेरी साली है, व् G.S. ही सखा-सहेली है, कुल मिलाकर UPSC, इक बड़ी अनबुझी पहेली है!! IAS की ये कैसी, दीवानगी हमपे छायी है! जिसके लिये हमने, सारी मस्ती ठुकराई है!! ये कैसी दीवानगी हमपे छायी है! की हमने सारी मस्ती ठुकराई है!!...:)