Posts

Showing posts from 2015

अर्थ हुआ कुअर्थ- 'दिवाली'

Image
अब समझने का न रहा समर्थ, बदल चुका दिवाली का अर्थ ! आज ढोल-नगाड़े बजते हैं, दीपों से आँगन सजते हैं ! ये आशय तो सूझ रहा है, पर विशाल कहीं और जूझ रहा है !! पश्चिम में नववर्ष मानते, दक्षिण  में हरिकथा सुनाते ! काली पूजा पूरब में करते, लक्ष्मी पूजा उत्तर में !! दिवाली उत्सव का भारत में, कारण हुआ अनेक ! तारीख-तरीका इन जश्नों का, फिर कैसे हुआ एक !! मानसून अब लौट चला है, सील अभी भी भारी है !! सूरज की गर्मी से अब, कीटों का विस्तार जारी है !! इस उत्सव की छाया में, विभिन्न मान्यताओं की माया में ! सब साफ़-सफाई करते हैं ! घर-आँगन और गलियारों की, रंग पुताई करते हैं !! अनेकों कीट  मरते हैं, कितनों के घर उजड़ते हैं ! फिर, दिवाली की जज्बात में, अमावस्या की काली रात में ! ढोल और नगाड़े बजाकर, हर तरफ दीये  जलाकर ! उन बेघर कीटों को हम, प्रकाश दिखा रिझाते थे ! दीयों के पास उन्हें बुलाकर, दीयों से उन्हें जलाते थे !! नये फैशन के चकाचौंध में, और व्यस्तता की औंध में ! ढोल-नगाड़ों की जगह, अब खूब पटाखे जलते हैं ! जिससे रोगी, वृद्ध और परिंदे, सांस लेने को तड़पते है

आज की राज

Image
मानस! क्यूँ आकुल है तू ! किस कारण व्याकुल है तू !! तू जल रहा है राग में, कामना की आग में ! रिद्धि-सिद्धि के लिए, इस आग को तू रोक ले !! ध्येय अपना साधकर, उत्तेजना को बांधकर ! लक्ष्य के प्रयास में , तू पूरी ऊर्जा झोंक दे !! यह पल अभी जो आया है, वापस कभी न आएगा ! जिंदगी के राह का, इतिहास बन रह जाएगा !! दिन-प्रतिदिन ध्यान कर, जीने की कला सीख तू ! कर्मों के कलम से अभी, इतिहास अपना लिख तू !! कभी भी अधीर हो, भाग्य पे रोना नहीं ! विलासिता की चाह में समय व्यर्थ खोना नहीं ! यह समय बहुत बलवान है, जीवन की यही जान है ! इस समय अगर तू, कर्मोन्मुख  हो जाएगा! जीवन के डगर पे, रिद्धि-सिद्धि पायेगा !! रिद्धि-सिद्धि पायेगा, तू रिद्धि-सिद्धि पायेगा.....!!

आधुनिक शिवपूजा- एक पाप

Image
आज विशाल जो सोच रहा है, कहने में संकोच रहा है ! लोगों को शायद तनिक न सुझा, क्यों होती है शिव की पूजा ! क्या होता है शिव का अर्थ, क्यों पूजा-पाठ सब रहा व्यर्थ !! देकर दुनिया को अमृत, कहते हैं विषपान किया ! विष को कंठ में धारण करके, नीलकंठ का नाम लिया !! कहता विशाल, सोचो-जानो, विष के अवयवों को पहचानो ! काम-क्रोध, लोभ और माया, उसी विष की हैं, प्रतिच्छाया !! जो कोई इन अवयवों को, काबू में रखना सीख जाता है ! शिव-ललाट पे चाँद के भाँती, शीतलता, मुख पे पाता है !! उसके जीवन से हर क्षण, मैत्री की धार निकलती है ! जैसे गंगा, शिव के सर से, निरंतर प्रफुस्टित होती है !! गले में लिपटा हो भुजंग, फिर भी, भयभीत नहीं होता है ! कितना भी गहन संकट आये, संतुलन कभी नहीं खोता है !! कैलाशपति शिव-शंकर के भाँती, जो कोई निरंतर ध्यान करे ! प्रज्ञा रुपी तीसरी नेत्र जगाकर, स्वयं का कल्याण करे !! महंगाई के इस चढ़ते दौर में, हम मूर्ति का दुग्ध-स्नान कराते ! अंधभक्ति में, विष का प्रतीक, बेल-पत्र, धतूर और भांग चढ़ाते !! पूरा दिन, लाउडस्पीकर में, शिव-महिमा का गुणगान किया ! पर शिव-गुणों को अपनाने खातिर, क्षण-मात्र

प्यार की खुमार (एक लड़की का)

Image
फिर आया है प्यार का मौसम, प्रियवर से दिलदार का मौसम !! तुझसे दिल की तार हुई है, खुशियों की बौछार हुई है !! सुरूर तेरी चाहत का, इस कदर छाने लगा है ! हर-पल, हर-जगह, तू हीं नजर आने लगा है !! वीरान थी ये जिंदगी, तेरे आने से पहले ! तेरी साँसों का, मेरी साँसों में, समाने से पहले !! बन के जादू , मेरी रूह में, समाने लगा है तू ! बेचैन करके हर लम्हा। तड़पाने लगा है तू !! तुझसे मिलने की हर आहट से, अंग-अंग फड़कता है ! संग होने के एहसास से, जेहन-व्-दिल धड़कता है !! हर-क्षण तेरी ख्यालों में, मैं खोयी रहती हूँ ! तेरे सपनों के साये में ही, सोयी रहती हूँ !! दिल की बगिया में, ये मौसम, अजीब बहार लायी है ! कहता विशाल, ओ पगली !  तुझपे, प्यार की खुमार छायी है !! प्यार की खुमार छायी है !! तुझपे प्यार की खुमार छायी है !!

प्यार की खुमार (एक लड़के का)

Image
इस वसंत-वहार की बेला में, गुलों-गुलजार की मेला में ! प्यार से प्यारे, तेरे प्यारे नैना, दे प्यार ले लिए, मेरे रैना !! तेरे प्यार की प्यारी सौदेबाजी, प्यारा-प्यार सिखाती है ! चुपके-चुपके बड़े प्यार से, मुझ प्यारे को रिझाती है !! बंद-पलकों से, शरमाकर, मुख-मंडल पे लाली लाकर ! आगोश में जब तू आती है, पूरकता का बोध कराती है !! तेरी मखमली बाहों का, आलिंगन जब-जब पाता हूँ ! भुलाकर खुद की साँसों को, तेरी साँसों में, रम जाता हूँ !! उन साँसों की गर्माहट, साथ तेरे होने की आहट, अंग-अंग फड़काता है ! स्पर्श तेरे कोमल होठों का, पागल-दीवाना कर जाता है !! दिल की बगिया में, ये मौसम, प्यार का सावन लाया है ! कहता विशाल, ओ पगले तुझपे, खुमार प्यार का छाया है !! खुमार प्यार का छाया है.... खुमार प्यार का छाया है !!

आधुनिक सरस्वती पूजा - एक पापकर्म

Image
मन अपना आज विचलित पाया, जैसे निगल रही हो काली साया ! लोगो को अब नहीं है सूझा, कैसे कर रहे हम सरस्वती पूजा !! जो पठन-पाठन में हैं बागी, पढ़ने की इक्छा कभी न जागी ! सरस्वती पूजा के खातिर, उन्होंने ही, महीनो घूमकर चन्दा मांगी !! गली-गली में मूर्ति लाये, फूल-माला से खूब सजाये ! मूर्ति को दुल्हन बनाये, पर माँ की छवि, देख न पाये !! फ़िल्मी धुनों पे गाना बजा, झांकी लेकर चलते हैं ! मदिरा के मद्य में मत्त हो, असुरों की तरह उछलते हैं !! युवाओं के मन-मंदिर में, यह कैसा अन्धकार है छाया ! विशाल कुंठित हो सोच रहा, क्या यह कलियुग की है माया !! "स्वयं का सार" आलेखन करती, माँ सरस्वती कहलाती है ! परम-ज्ञान की द्योतक है ये, विद्यादायनी मानी जाती है !! ऐसी देवी की, इस पूजा में, जो साथ दिया वह दागी है ! आशीर्वादों का नहीं, वह, कठोर श्राप का भागी है !! ऐसी मनोव्यस्था से बाहर निकल, आओ करें सद्बुद्धि  की कामना ! मन-मंदिर में स्थिर बैठ, करें हम, माँ की आराधना!! करें हम, माँ की आराधना - २ 

मरने का रहस्य

Image
सुनो ओ प्यारे जान लो, मरने का रहस्य पहचान लो! दुनिया से यह तेरी, माया-मोह का अंत है ! इसके अगले क्षण ही, चित्त की शांति अनंत है !! पाने का कोई लोभ नहीं, खोने का भी क्षोभ नहीं ! तभी बारम्बार विशाल, मरने का देता मिशाल !! परमसुख के आस्वादन हेतु, चलो हम हर-रोज मरें ! प्रज्ञा की मुखाग्नि देकर, तृष्णा का हम दाह करें !! फिर हर सुबह की नयी किरण, नयी-नयी तरंगें लायेंगी ! नवजन्मे बच्चे की भांति, तुझमें उमंगें भर जाएंगी !! फिर, तुझसे बड़ा कोई संत न होगा, तेरे सुख-शांति का अंत न होगा ! सुनो ओ प्यारे जान लो, मरने का रहस्य पहचान लो !! मरने का रहस्य पहचान लो, मरने का रहस्य पहचान लो.....