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पुरवाई

आते-जाते बादल में, रात की चाँदनी चादर में! विभोर हो मन-मद्द नाच उठा, स्पर्श हवा का पाया जब, इस सावन के पुरवाई का!! जूही, चमेली, रातरानी की खुशबू, जाने कहाँ से चलकर आयी थी! सुगंध इनकी, साँसों के, हर निवाले में समायी थी!! सुबह हुई जब आँख खुली, आलस्य का वैभव छाया था! ये पूर्वा बयार, अंग-अंग के, भूले पीड़े को जगाया था!! जब बिस्तर छोड़ सैर को निकला, मिजाज हुआ अंगराई का! स्पर्श हवा का पाया जब, इस सावन की पुरवाई का!! क्षण धूप हुआ, क्षण छाँव हुआ, सोंधी मिट्टी की खुशबू से, आच्छादित था गाँव हुआ! रोम-रोम हर्षाया तब, धुन सरगम का पाया जब, रिमझिम बूंदों की शहनाई का!! विभोर हो मन-मद्द नाच उठा, स्पर्श हवा का पाया जब, इस सावन के पुरवाई का!!