Posts

श्रद्धांजलि- श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी

एक और जीवन की गौरव-गाथा, सबके मुख की सार हुई है ! भारत माँ के इक लाल की, फिर से आज जयकार हुई है !! इनके चित्र और शब्दों का, सबने है सोशल प्रोफाइल बनाया ! भाव-भंगिमा में आकर, उन्हें माँ भारती का लाल बताया !! ये सब कहाँ थे, जब साँसे इनकी, वृद्ध-व्याधि से हार रही थी ! देख दशा इस लाल की, जब माँ भारती चीत्कार रही थी !! आज मृत शरीर पे फूल बरसा, लोग झांकी लेकर घूम रहे हैं ! इनके वचनों की जय-जयकार, आसमां को चूम रहे हैं !! मातृ-सेवा का व्रतधारी, पौरुषता का मिशाल बना जो ! जीवन की लौ में तप-तपाकर, माँ भारती की ढाल बना जो !! उस कालजयी शिखर पुरुष की, सच्ची श्रद्धांजलि क्या होगी ? चलो दो पल विचार करें हम, जो अंतरात्मा आवाज लगाए, उसे आज स्वीकार करें हम !!

विद्यार्थी-जीवन (Specially for students in age group 15-25 years)

विद्यार्थी-जीवन, होता सबसे न्यारा ! इसके हाथों में होता है, भाग्य हमारा !! संभावनाओं से, भरपूर यह होता ! ऊर्जा भी इसमें, प्रचुर होता !! यह ऊर्जा हमारी, कौतुहलता बढ़ता ! (high kinetic energy) कभी कभी हममें, हाताशी भी लाता !! (high static energy) क्षण-भर में समझता, जग का हूँ नायक ! अगले-क्षण समझता, किसी के न लायक !! कच्ची-समझ, कुछ समझ नहीं पाती ! ऊपर से अपनी, यौवनता सताती !! इसी बीच सभी कहते हैं, पढ़ने को ! कलम की स्याही से, जीवन गढ़ने को !! समझ नहीं आये, जीवन का झमेला ! इस भवँर में पाऊं मैं, खुद को अकेला !! बिशाल भैया ने, मुझे पास बुलाया ! विद्यार्थी-जीवन की महत्ता समझाया !! "अभी की ऊर्जा है, तेरी जिव्यशक्ति ! पढाई हीं है, तेरी मातृभक्ति !! इस ऊर्जा को, तटीकृत कर ले तू ! मन की चंचलता, नियंत्रित कर ले तू !! नित्-ध्यान कर, इक्षाशक्ति बढ़ाओ ! हर-रोज पढ़ने की, आदत लगाओ !! विद्यार्थी-जीवन होता सबसे न्यारा ! इसकी मुट्ठी में होता है, जीवन हमारा !! विद्यार्थी-जीवन होता सबसे न्यारा...."

महायुद्ध (Mahayuddh)

Image
जब अँधेरे में स्थिर बैठा, अंगों का हलचल शांत हुआ ! स्वास-पथ पे चलते चलते, पल-पल मन में होनेवाले, तब महायुद्ध का ज्ञात हुआ !! यहाँ धर्मयुद्ध है, व् कर्मयुद्ध भी, मन का मन ही प्रतिद्वंदी है ! बुद्धि-विवेक और समझ हमारी, अज्ञानता के बंदी हैं !! लोभ-मोह और भोग-विलास, एक खेमे में रहते हैं ! ज्ञान, त्याग और सहनशीलता, दूसरे खेमे में बसते हैं !! क्या करूँ, क्या नहीं करूँ, युद्ध का संतुलन बतलाता है ! जिसको जितना बलवान किया, स्वाभाव वही बन जाता है !! मन ही सच्चा दोस्त बना, और मन ही जानी-दुश्मन ! कहता बिशाल, कर ले तू साकी, मन से मन का अर्पण !!

आत्मबोध - III

मन-मंदिर के अंतःकण में, घोर विचलन के इस क्षण में ! विशाल को नहीं सूझ रहा, किससे और क्यों वो जूझ रहा !! लोक-लाज की छाया में, व् कलियुग की काली माया में ! सब कहते "तू कर ले शादी", मिल जायेगी जीवनसाथी !! सबके पास एक पार्थ हैं, (पार्थ = candidate) सबका अपना स्वार्थ हैं ! कोई दहेज़ से तौल रहा है, कोई सौंदर्य से मोल रहा है !! नित-प्रतिदिन वर्षों से में, इक ही बात बोल रहा हूँ ! क्षण-प्रतिक्षण, अपने जीवन से, जीने के राज खोल रहा हूँ !! चाह नहीं नए रिश्तों के, बंधन में बँधता जाऊं। चाह नहीं शादी करके, एकांकी परिवार बनाऊं !! आधा जीवन बीत चुका, आधा जीवन ही बाकी है ! मेरे जीवनपथ पे मिलनेवाले, जन-जन मेरे साकी हैं !! माया-मुक्त हो चलते जाना, मेरे जीवन का भावार्थ है ! बंधन-मुक्त हो दुनिया त्यागूँ , मेरा यही स्वार्थ है !! मेरा यही स्वार्थ है...... बस मेरा यही स्वार्थ है......!!

अर्थ हुआ कुअर्थ- 'दिवाली'

Image
अब समझने का न रहा समर्थ, बदल चुका दिवाली का अर्थ ! आज ढोल-नगाड़े बजते हैं, दीपों से आँगन सजते हैं ! ये आशय तो सूझ रहा है, पर विशाल कहीं और जूझ रहा है !! पश्चिम में नववर्ष मानते, दक्षिण  में हरिकथा सुनाते ! काली पूजा पूरब में करते, लक्ष्मी पूजा उत्तर में !! दिवाली उत्सव का भारत में, कारण हुआ अनेक ! तारीख-तरीका इन जश्नों का, फिर कैसे हुआ एक !! मानसून अब लौट चला है, सील अभी भी भारी है !! सूरज की गर्मी से अब, कीटों का विस्तार जारी है !! इस उत्सव की छाया में, विभिन्न मान्यताओं की माया में ! सब साफ़-सफाई करते हैं ! घर-आँगन और गलियारों की, रंग पुताई करते हैं !! अनेकों कीट  मरते हैं, कितनों के घर उजड़ते हैं ! फिर, दिवाली की जज्बात में, अमावस्या की काली रात में ! ढोल और नगाड़े बजाकर, हर तरफ दीये  जलाकर ! उन बेघर कीटों को हम, प्रकाश दिखा रिझाते थे ! दीयों के पास उन्हें बुलाकर, दीयों से उन्हें जलाते थे !! नये फैशन के चकाचौंध में, और व्यस्तता की औंध में ! ढोल-नगाड़ों की जगह, अब खूब पटाखे जलते हैं ! जिससे रोगी, वृद्ध और परिंदे, सांस लेने को तड़पते है

आज की राज

Image
मानस! क्यूँ आकुल है तू ! किस कारण व्याकुल है तू !! तू जल रहा है राग में, कामना की आग में ! रिद्धि-सिद्धि के लिए, इस आग को तू रोक ले !! ध्येय अपना साधकर, उत्तेजना को बांधकर ! लक्ष्य के प्रयास में , तू पूरी ऊर्जा झोंक दे !! यह पल अभी जो आया है, वापस कभी न आएगा ! जिंदगी के राह का, इतिहास बन रह जाएगा !! दिन-प्रतिदिन ध्यान कर, जीने की कला सीख तू ! कर्मों के कलम से अभी, इतिहास अपना लिख तू !! कभी भी अधीर हो, भाग्य पे रोना नहीं ! विलासिता की चाह में समय व्यर्थ खोना नहीं ! यह समय बहुत बलवान है, जीवन की यही जान है ! इस समय अगर तू, कर्मोन्मुख  हो जाएगा! जीवन के डगर पे, रिद्धि-सिद्धि पायेगा !! रिद्धि-सिद्धि पायेगा, तू रिद्धि-सिद्धि पायेगा.....!!

आधुनिक शिवपूजा- एक पाप

Image
आज विशाल जो सोच रहा है, कहने में संकोच रहा है ! लोगों को शायद तनिक न सुझा, क्यों होती है शिव की पूजा ! क्या होता है शिव का अर्थ, क्यों पूजा-पाठ सब रहा व्यर्थ !! देकर दुनिया को अमृत, कहते हैं विषपान किया ! विष को कंठ में धारण करके, नीलकंठ का नाम लिया !! कहता विशाल, सोचो-जानो, विष के अवयवों को पहचानो ! काम-क्रोध, लोभ और माया, उसी विष की हैं, प्रतिच्छाया !! जो कोई इन अवयवों को, काबू में रखना सीख जाता है ! शिव-ललाट पे चाँद के भाँती, शीतलता, मुख पे पाता है !! उसके जीवन से हर क्षण, मैत्री की धार निकलती है ! जैसे गंगा, शिव के सर से, निरंतर प्रफुस्टित होती है !! गले में लिपटा हो भुजंग, फिर भी, भयभीत नहीं होता है ! कितना भी गहन संकट आये, संतुलन कभी नहीं खोता है !! कैलाशपति शिव-शंकर के भाँती, जो कोई निरंतर ध्यान करे ! प्रज्ञा रुपी तीसरी नेत्र जगाकर, स्वयं का कल्याण करे !! महंगाई के इस चढ़ते दौर में, हम मूर्ति का दुग्ध-स्नान कराते ! अंधभक्ति में, विष का प्रतीक, बेल-पत्र, धतूर और भांग चढ़ाते !! पूरा दिन, लाउडस्पीकर में, शिव-महिमा का गुणगान किया ! पर शिव-गुणों को अपनाने खातिर, क्षण-मात्र