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गणेश पूजा

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गणेश-चतुर्थी के शुभ अवसर पे, विशाल को आज यही है सुझा! तन-मन ज्ञान और निष्ठां से, घर-घर में हो श्री गणेश की पूजा!! मुखड़ा है गजराज की भाँती, पेट ऐसा की ढँक गया छाती! पर हीनता का कोई बोध नहीं, सुन्दर दिखने का लोभ नहीं!! (जबकी) आज फ़िल्मी धुन पे गाना बजा, हम मूर्ति पूजन करते हैं! और पूजा करने के खातिर, हम  घंटो तक सवंरते हैं!! आज सुशिक्षित होने का लेप लगा, हम ऐसे अन्धकार में जी रहे हैं! मानो अमृत-प्याली  में, ओ साकी, विष हलाहल पी रहे हैं!! जब वे केवल बालक थे, माँ के आज्ञा के पालक थे, सर कलम कर डाला पिता ने इनकी, पर नहीं दिखाया क्षोभ तनिक भी! पूजनीय थी ऐसी सहनशीलता, आओ आज जगाएं इसे हम भी!! ब्रम्हांड दिखा इन्हें मात-पिता में, ये परम सत्य के शोधक हैं! विवेक, बुद्धि और ज्ञान रूप में, रिद्धि-सिद्धि के बोधक हैं!! रूप-जाल को तोड़ जो प्राणी, इन  गुणों को अपनाता है! शुभ-अशुभ के भवंर से उठ, अपना  अंतर्गणेश जगाता  है!! फिर शुभ-ही-शुभ होता जीवन में, लक्ष्मी को, साथ निरंतर भाता  है! ऐसा कीर्ति पाता है जग में, की उसका हर रूप पूजनीय हो जाता है!! व

उलझन

तह-ऐ-दिल में तेरी तमन्ना छुपाये, आरजू की तेरी सपनें संजोये! सोचता हूँ अब किधर जाऊंगा मैं, जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं!! जानता हूँ, तू मेरी किस्मत नहीं है, पर तुझे खोने की, मुझमें हिम्मत नहीं है!! दर्दों को भुलाकर, नींदों को सुलाकर, चाहत में तेरी, किया खुद को अर्पण! जब से तुने मुझसे, नजरें मिलायी, नज़रों को तेरी, बनाया मैं दर्पण!! फिर, हर फड़कन तेरे नाम का चिंगारी लाया, हर धड़कन तेरी चाहत को जगाया!! मुह्हबत में तेरी हुआ बावला मैं, समझ न सका तेरी उलझी पहेली! (जबकी) तेरी बेवफाई और तिर्या-चरित्र से, हर रोज चेतायी, मेरी वो सहेली!! पर जब-जब कहती वो, "तेरे लायक नहीं मैं", मेरे दिल ने पूछा, "क्या अपना नायक नहीं मैं"!! दिल के इस कथन पे, चहकता चला मैं! तेरे लटों की डगर पे, बहकता चला मैं!! मूरत को तेरी, मन-मंदिर में बसाये, तृष्णा की ज्वाला, इस कदर है जलाया! की सोचता हूँ अब किधर जाऊंगा मैं, जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं... जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं... जाकर किधर भी क्या पाऊंगा मैं...