वो अनजानी सूरत

इस बेमौसम बरसात में, जहाँ पत्ता-पत्ता झूम रहा है! दहक उठा दीवाना दिल, वो अनजानी नजरें ढूंढ़ रहा है! जिनके पलकों के नीचे से, गंगा-यमुना के भांति, मदिरा की धार निकलती है! जो घूंट पिला, इक दर्शन का, इस बंजर को तृप्त कर देती है!! पंखुरियों सी गाल गुलाबी, बना देती बिन-पीये शराबी! अनछुई वो ओठ सबनमी, मिटा देती है सारी कमी!! मोरनी सी बलखाती कमर पे, जब काले बाल मंडराते हैं! पल भर में इस दीवाने दिल को, अनेकों सांप सूंघ जाते हैं!! वो कुदरत की कोई सूरत है, या सुन्दरता की मूरत है! इस बेमौसम बरसात में, उस सीरत की जरुरत है, उस सीरत की जरुरत है!!