सबक (For girls)
इस बावली मौसम की बहार में, रिमझिम सी बूंदों की फुहार में! मद-मस्त हो तब मैं झूम रही थी, उन्मुक्त गगन को चूम रही थी!! तब बावला होकर मेरी चाह में, चारो पहर मंडराता था! मेरी हर अदाओं पे वो, अपनी जान फरमाता था!! घंटो-घंटो तक फोन किया, सपनों का जाल बिछाया वो! हर घड़ी मनोहर बात बनाकर, मुझ पगली को रिझाया वो!! जब यकीन किया उसके पौरुष पे, उसके बातों का इकरार किया! माने या न माने वो, फिर, तहे-दिल से उसे प्यार दिया!! परवाह किये बिना दुनिया की, उसपे मैं जान बिछाती थी! उसकी हर अदायें तब, मुझ बावली को रिझाती थीं!! मेरी वही सादगी वही तरुणा, उसे अब नहीं भाति है! जानें क्यूँ मुझसे मिलने से, उसकी नजरें कतराती हैं!! गह-विगह वह फोन लगाकर, कहता है मुझे भूल रहा है! सूना है आजकल वो बेवफा, किसी और की बाँह में झूल रहा है!! अब समझ चुकी इस 'प्यार' का अर्थ, 'सबक' इसे इक मान लिया है! कर्मभूमि को जाऊँगी, मैं भी अब ठान लिया है!! अपनी जीवन को अब मैं, ऐसा सफल बनाऊंगी की, वो इक दिन पछतायेगा! वो इक दिन पछतायेगा! वो जरुर इक दिन पछतायेगा!!