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Showing posts from February, 2012

सबक (For girls)

इस बावली मौसम की बहार में, रिमझिम सी बूंदों की फुहार में! मद-मस्त हो तब मैं झूम रही थी, उन्मुक्त गगन को चूम रही थी!! तब बावला होकर मेरी चाह में, चारो पहर मंडराता था! मेरी हर अदाओं पे वो, अपनी जान फरमाता था!! घंटो-घंटो तक फोन किया, सपनों का जाल बिछाया वो! हर घड़ी मनोहर बात बनाकर, मुझ पगली को रिझाया वो!! जब यकीन किया उसके पौरुष पे, उसके बातों का इकरार किया! माने या न माने वो, फिर, तहे-दिल से उसे प्यार दिया!! परवाह किये बिना दुनिया की, उसपे मैं जान बिछाती थी! उसकी हर अदायें तब, मुझ बावली को रिझाती थीं!! मेरी वही सादगी वही तरुणा, उसे अब नहीं भाति है! जानें क्यूँ मुझसे मिलने से, उसकी नजरें कतराती हैं!! गह-विगह वह फोन लगाकर, कहता है मुझे भूल रहा है! सूना है आजकल वो बेवफा, किसी और की बाँह में झूल रहा है!! अब समझ चुकी इस 'प्यार' का अर्थ, 'सबक' इसे इक मान लिया है! कर्मभूमि को जाऊँगी, मैं भी अब ठान लिया है!! अपनी जीवन को अब मैं, ऐसा सफल बनाऊंगी की, वो इक दिन पछतायेगा! वो इक दिन पछतायेगा! वो जरुर इक दिन पछतायेगा!!

सबक (For boys)

इन खुशियों की पावन बेला में, और दिलवालों की मेला में! हम पास रहकर भी दूर हुए, सब अरमान चकनाचूर हुए!! मानो मुट्ठी में वो जैसे, रेत की भांति फिसल गयी! इस दुनियादारी की चक्की में, मेरी अभिलाषा पिसल गयी! धड़कन से ज्यादा प्यार दिया, पल-पल उसका दिलदार किया! पर जाने किस सजा में विधि ने, आज ऐसा प्रहार किया!! इक आहट मात्र, साथ होने की, पूरकता का बोध कराती थी! और यादें उसकी सीरत की, नयी ऊर्जा देकर जाती थी!!  फिर लग जाता नितकर्मों में, बड़ी लगन से निशदिन पढता था! इक ईष्ट की भांति सारी मेहनत,  उसी को अर्पण करता था!! सोचा था उसको भी शायद, इंतज़ार है मेरा आने का! किसी पावन घडी में आकर, मेरा उसको अपनाने का!! पर थाम लिया किसी और ने दामन, देरी हो गयी आने में! वक्त की नियति न समझा, तभी बैठा हूँ महखाने में!! घाव लगे इस आहत दिल को, विशाल किसी तरह संभाल लिया! पर दीवानों की, हर टोली के लिए, इसे "सबक" का, है नाम दिया!! दीवानों की, हर टोली के लिए, इसे "सबक" का, है नाम दिया! इसे "सबक" का, है ना...