आधुनिक सरस्वती पूजा - एक पापकर्म

मन अपना आज विचलित पाया, जैसे निगल रही हो काली साया ! लोगो को अब नहीं है सूझा, कैसे कर रहे हम सरस्वती पूजा !! जो पठन-पाठन में हैं बागी, पढ़ने की इक्छा कभी न जागी ! सरस्वती पूजा के खातिर, उन्होंने ही, महीनो घूमकर चन्दा मांगी !! गली-गली में मूर्ति लाये, फूल-माला से खूब सजाये ! मूर्ति को दुल्हन बनाये, पर माँ की छवि, देख न पाये !! फ़िल्मी धुनों पे गाना बजा, झांकी लेकर चलते हैं ! मदिरा के मद्य में मत्त हो, असुरों की तरह उछलते हैं !! युवाओं के मन-मंदिर में, यह कैसा अन्धकार है छाया ! विशाल कुंठित हो सोच रहा, क्या यह कलियुग की है माया !! "स्वयं का सार" आलेखन करती, माँ सरस्वती कहलाती है ! परम-ज्ञान की द्योतक है ये, विद्यादायनी मानी जाती है !! ऐसी देवी की, इस पूजा में, जो साथ दिया वह दागी है ! आशीर्वादों का नहीं, वह, कठोर श्राप का भागी है !! ऐसी मनोव्यस्था से बाहर निकल, आओ करें सद्बुद्धि की कामना ! मन-मंदिर में स्थिर बैठ, करें हम, माँ की आराधना!! करें हम, माँ की आराधना - २