आधुनिक शिवपूजा- एक पाप

आज विशाल जो सोच रहा है, कहने में संकोच रहा है ! लोगों को शायद तनिक न सुझा, क्यों होती है शिव की पूजा ! क्या होता है शिव का अर्थ, क्यों पूजा-पाठ सब रहा व्यर्थ !! देकर दुनिया को अमृत, कहते हैं विषपान किया ! विष को कंठ में धारण करके, नीलकंठ का नाम लिया !! कहता विशाल, सोचो-जानो, विष के अवयवों को पहचानो ! काम-क्रोध, लोभ और माया, उसी विष की हैं, प्रतिच्छाया !! जो कोई इन अवयवों को, काबू में रखना सीख जाता है ! शिव-ललाट पे चाँद के भाँती, शीतलता, मुख पे पाता है !! उसके जीवन से हर क्षण, मैत्री की धार निकलती है ! जैसे गंगा, शिव के सर से, निरंतर प्रफुस्टित होती है !! गले में लिपटा हो भुजंग, फिर भी, भयभीत नहीं होता है ! कितना भी गहन संकट आये, संतुलन कभी नहीं खोता है !! कैलाशपति शिव-शंकर के भाँती, जो कोई निरंतर ध्यान करे ! प्रज्ञा रुपी तीसरी नेत्र जगाकर, स्वयं का कल्याण करे !! महंगाई के इस चढ़ते दौर में, हम मूर्ति का दुग्ध-स्नान कराते ! अंधभक्ति में, विष का प्रतीक, बेल-पत्र, धतूर और भांग चढ़ाते !! पूरा दिन, लाउडस्पीकर में, शिव-महिमा का गुणगान किया ! पर शिव-गुणों को अपनाने खातिर, क्षण-मात्र ...