महायुद्ध (Mahayuddh)














जब अँधेरे में स्थिर बैठा,
अंगों का हलचल शांत हुआ !
स्वास-पथ पे चलते चलते,
पल-पल मन में होनेवाले,
तब महायुद्ध का ज्ञात हुआ !!

यहाँ धर्मयुद्ध है, व् कर्मयुद्ध भी,
मन का मन ही प्रतिद्वंदी है !
बुद्धि-विवेक और समझ हमारी,
अज्ञानता के बंदी हैं !!

लोभ-मोह और भोग-विलास,
एक खेमे में रहते हैं !
ज्ञान, त्याग और सहनशीलता,
दूसरे खेमे में बसते हैं !!

क्या करूँ, क्या नहीं करूँ,
युद्ध का संतुलन बतलाता है !
जिसको जितना बलवान किया,
स्वाभाव वही बन जाता है !!

मन ही सच्चा दोस्त बना,
और मन ही जानी-दुश्मन !
कहता बिशाल, कर ले तू साकी,
मन से मन का अर्पण !!

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