अपना संस्कार "नारी-मूल्य"
इन पाश्च्या-देशों में, नारी-मूल्य का मान देख,
आंतकित करता मुझे, इक विचार!
इन पाश्च्य-जनों की तुलना में,
आखिर! कैसे धन्य है हमारा संस्कार!!
उम्र के इस नए पड़ाव में,
कौतूहलता की इस कठिन शैलाव में,
नव-पुरुषों की भाँती, नव-युवतियों में भी,
वैसे ही बदलाव आते हैं!
फिर,नव-पुरुषों का कोई प्रेम-प्रसंग, जहाँ सामाजिक-प्रतिष्ठा को दर्शाता है!
क्यूँ यही प्रसंग युवतियों के लिये, उनके चरित्र का मान बन जाता है!!
पुरुषों के मनोरंजन के खातिर,
युगों से वेश्यालय बहुचर्चित है!
फिर महिलाओं के लिये,
Polyandry होना क्यूँ वर्जित है??
हमारे संस्कार की काया में,
हम पुरुषों की रची माया में,
क्या नारी का जीवन मूल्यवान नहीं?
क्या उनमें मानवी जान नहीं?
लड़की को हम लक्ष्मी बोलते!
व् उनके सब अरमानों को कुचल,
शादी के वक्त, उनका मूल्य दहेज़ से तौलते!!
उन बेचारियों की बेबसी देख,
इस संस्कार की महानता पे, अब लज्जा आती है!
हम माँ काली की पूजा करते हैं?
या, उनके प्रलयंकारी छवि से डरते हैं?
दैव पुरुषों द्वारा, वर्ण-भेद का वो परिहास,
आखिर क्या बतलाता है?
क्या यह हमारे संस्कार के,
प्रभुता को दिखलाता है??
इक नारी का रंग सांवला (काला) होना,
क्यूँ इक श्राप की भाँती है?
क्यूँ ये समाज उन्हें, आजीवन हीनता का एहसास दिलाती है??
धन्य हमारा संस्कार नहीं,
धन्य हैं हमारे समाज की नारीयाँ!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!!
आंतकित करता मुझे, इक विचार!
इन पाश्च्य-जनों की तुलना में,
आखिर! कैसे धन्य है हमारा संस्कार!!
उम्र के इस नए पड़ाव में,
कौतूहलता की इस कठिन शैलाव में,
नव-पुरुषों की भाँती, नव-युवतियों में भी,
वैसे ही बदलाव आते हैं!
फिर,नव-पुरुषों का कोई प्रेम-प्रसंग, जहाँ सामाजिक-प्रतिष्ठा को दर्शाता है!
क्यूँ यही प्रसंग युवतियों के लिये, उनके चरित्र का मान बन जाता है!!
पुरुषों के मनोरंजन के खातिर,
युगों से वेश्यालय बहुचर्चित है!
फिर महिलाओं के लिये,
Polyandry होना क्यूँ वर्जित है??
हमारे संस्कार की काया में,
हम पुरुषों की रची माया में,
क्या नारी का जीवन मूल्यवान नहीं?
क्या उनमें मानवी जान नहीं?
लड़की को हम लक्ष्मी बोलते!
व् उनके सब अरमानों को कुचल,
शादी के वक्त, उनका मूल्य दहेज़ से तौलते!!
उन बेचारियों की बेबसी देख,
इस संस्कार की महानता पे, अब लज्जा आती है!
हम माँ काली की पूजा करते हैं?
या, उनके प्रलयंकारी छवि से डरते हैं?
दैव पुरुषों द्वारा, वर्ण-भेद का वो परिहास,
आखिर क्या बतलाता है?
क्या यह हमारे संस्कार के,
प्रभुता को दिखलाता है??
इक नारी का रंग सांवला (काला) होना,
क्यूँ इक श्राप की भाँती है?
क्यूँ ये समाज उन्हें, आजीवन हीनता का एहसास दिलाती है??
धन्य हमारा संस्कार नहीं,
धन्य हैं हमारे समाज की नारीयाँ!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!!
धन्य हमारा संस्कार नहीं,
ReplyDeleteधन्य हैं हमारे समाज की नारीयाँ!
धन्य हैं उनकी सहनशीलता!!...gr8 thoughts presented in the form of poem..i hope people will learn something..keep it up!!
Bishal bhai, aap kis jamaane me jee rahe hai!!!!
ReplyDeletetu achhi hindi words use kr leta hai
ReplyDeletenice poem
bahut marmik kavita hai...yug pariwartan karne wale nawyuoko ke lie prerniy hai. itni samvedanshilta se aapne socha ,bahut acha laga...sukshm awlokan karne par bahut sari choti choti baate hain pratidin ki jisko kavita me dala ja sakta hai , lekin samjhane wale ke lie kafi hai...aapki lekhan shaili ke lie badhai aur aapki sochne ki disha ke lie dhnyawad
ReplyDeletenice thought
ReplyDeletelast para kafi sahi hai .. sahi thoughts hai but first para thora out of context laga..
ReplyDelete@All.. thank you very much..
ReplyDelete@Amit.. 1st paragraph is the root of this poem.. samajhne ki koshish karo...:)
i read this poem today only...
ReplyDeletesaloni ne jo kaha hai main purntah sahmat hun.bahut samvedansheelta se sochne per hi az ke yug me in sab baaton per dhyan jata hai jo tumne prashn ke roop me padyatmak shaily me uthai hain..aur sach to ye hai ki stree sanskar ki jaden bhale hi sashakt thin parantu puruh sanskar ka patan to adi yug me hi shuru ho gaya tha...bahut achhi shaily me apne vichar rakhe hain.meri shubhkamnayen aur badhai.
@Shalini... Thanks for your words Anu!!
ReplyDeleteits too good....
ReplyDeleteमंगलवार 21/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
बहुत सुन्दर ......
ReplyDeletebahut sundar katu satya ...
ReplyDeleteयथार्थ का प्रेरक चित्रण
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