मंजिल के मुसाफिर (Few words for those who could not qualify this year )











ओ! मंजिल के मुसाफिर,
वो बेला है आयी!
अपनी नींदिया भगा कर,
ख्वाबों से जगा कर!
जो कृष्णा है तेरी,
सोयी तृष्णा है तेरी!
उसे पाने के लिये, खुद को तैयार कर ले!
इस पावन घड़ी में (in this student life), जी-भर प्यार  कर ले!!

तेरी लक्ष्य को तेरी साधना में समाने,
तेरी नईया की टूटी पतवार बनाने!
समय की घड़ी, लो आज फिर आयी,
संग अपने तेरे-लिये, नयी रोशनी है लायी!
जिसे आज तू, स्वीकार कर ले,
इस पावन घड़ी में, जी-भर प्यार कर ले!!

भौरों की भांति, तू चंचल है तबतक,
अपनी मंजिल को, पायेगा न जबतक!
रास्ट्र व् समाज को  तुमसे, आशा है जैसी,
तुम्हारी अभिलाषा, भी शायद है ऐसी!
तू अपनी इस चाहत की, सच्ची-पहचान कर ले,
इस पावन घड़ी में, जी-भर प्यार कर ले!!
इस पावन घड़ी में, जी-भर प्यार कर ले!!

Comments

  1. बहुत उम्दा है...

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  2. Abhilasha to pata nahi kaisi hai, but excellent,super poem deer.



    ----------- Ravi

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  3. धन्यवाद आचार्य जी और उड़न तस्तरी!!

    @Ravi.. Apni abhilasha ki pahchan hona bahut jaruri hai.. btw thanks for your words..

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  4. maja aa gaya.
    Teri har kavita me ABHILASHA jaroor hoti hai.

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  5. a nice one again...keep writing!!

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  6. kya baat hai...too good to resist...

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  7. @all above... Thank you very much for such appreciations...:)

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