'इंजीनियरिंग' मेरी भूल


इंजीनियरिंग में चयन हुआ जब,
गर्व हुआ घरवालों को!
जगा दिए सब अरमां दिल में,
इंजिनियर कहलाने को!!

किस्सा है वो पहले साल की,
बंधक हुए हम, खुद के जाल की!!

देर रात तक, रैगिंग होती!
सुबह क्लास भी, जल्दी होती!!

इस बेबस दौराहे पे,
दिख गयी रीना और मीना!
classes छोड़ सिखा गयी वों,
बिन-काम यारों संग जीना!!

टीचर्स और यारों के बीच,
होती अक्सर खिंचा-तानी!
साथ छोड़ टीचर्स का हम,
करने लगे थे मनमानी!!

दिन-महीने साल भी बीते,
फिर समय का आगाज हुआ!
बदनामी से डरने लगा,
जब नौकरी का मोहताज हुआ!!

अब यारों का भी साथ नहीं,
न रीना है न मीना है!
सोचा करता हूँ अब बस,
ये जीना भी क्या जीना है!!

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