वो बैगन की खेती

यादों की नईया, जब हिचकोले लेती!
फिर याद आती, वो बैगन की खेती!!
हरे-नीले उजले, व् काले थे बैगन!
उन्हें देख झूम, उठता था अंतर्मन!!
अमित प्यार से, करता मैं सिचाईं!
उन्हें साथ देख, दूर रहती तन्हाई!!
दिन के उजाले में, करता मैं जुताई!
रातों के अँधेरे में, होती खूब पढाई!!
शारीरिक-मानसिक श्रम की, ऐसी संतुलन थी बनायी!
जिसने प्रतिकूल परिवेश में भी, सफलता दिलायी!!
जब जब इस दिल को, तन्हाई सताती!
वो बैगन की खेती, फिर याद आती!!
Nice!Mujhe apne gaon ki,khet-khalihan ki yaad aa gayi.Likhte rahiye.Shubhkamnayein!
ReplyDeleteyaar ek do peti yahan bhi bhej de..sali bahut mahangi hai...
ReplyDeletewaisse I liked this line "अमित प्यार से, करता मैं सिचाईं!"
ReplyDeletenic expression of memories
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